Friday 28 February 2014
Wednesday 26 February 2014
संसदवाणी: कौन आम, खास कौन?
संसदवाणी: कौन आम, खास कौन?
टेढी मेढी बुनियादो! पर भवन खडा हेै
राजनीति मे! लावारिस भी एक धडा है
हारे थके सिपाही धन्धा ढूॅ!ढ रहे है!
लूले,ल!गडे़,काणे बन्दा ढूॅ!ढ रहे है!
वाह रे,प्रजातन्त्र तेरी माया है न्यारी
भूखे-न!गे पाल रहे है! खद्दरधारी
बीहड़ के डाकू स!सद की षान बढाये!
राश्ट्र-गीत भी राश्ट्र लूटने वाले गाये!
थर्ड- मोरचा बनने की भी तैयारी है
जनमत मे!ये सारे ख!जर,दो धारी है!
गाली देकर भी सत्ता,ख!गाल रहे है!
सपनो के गमले मे!बरगद पाल रहे है!
पहले भी तो थर्ड-फ्रन्ट स्ट!ट बने थे
जनमत की धरती मे!,खरपतवार घने थे
सपा.बासपा,सी.पी.एम और सीपीआइ
ममता,समता ने भी अपनी टाॅ!ग अडायी
पूरबपष्चिमउत्तर,दक्षिण के लावारिस
वो भी बनना चाहते हे!नाजायज वारिस
तैयारी मे! बाबा और अन्ना के चेले
नीम , गिलोइ के उपर भी चढे़ करेले
ये चैराहो! के लावारिस भी तैयारी मे!
गाजर घासे!प्रजातन्त्र की इस क्यारी मे!
जनमत की पूॅ!जी को ये मिलकर खाये!गे
धोती और ल!गोटे अब स!सद जाये!गेे
भानूमति के कुडमे! के ये प्रतिनीधी है!
सत्ता कब्जाने की इनकी एक विधी है
जनता से क्या लेना,सारे भाड़मे! जाय
ये स!सद है,प्रजातन्त्र का एक सराॅ!य
कटे ठू!ट मे!,हरी-भरी कुछ पत्ती जागी
इस भारत की जनता भी है बडी अभागी
दारू,अय्यासी ,पैसो! मे! बिक जाती है
नालायक सन्तान देष को क्यो! खाती हैे
कामरेड नीतीष,नवीन और ममता,समता
माया और मुलायम भी हैे पक्का रमता
चार दिषा के गिरे,पडे़ कई और मिले!गे!
लोकतन्त्र का नया झगोला सभी सिले!गे!
कितने दुर्दिन भारत माता अब देखेगी
बची राश्ट्र कर इज्जत कीचड़मे!फे!केगी
चाय पकौडीअश्टा!गयोग का ही खोै!चा है
भारत मा! की इज्जत को सबने पो!छा है
देख चुनाव के कोठे मे! अब दा!व लगे है!
कल तक थे विपरीत देख लो आज सगे है!
ये,चोर,उचक्के,डाकू,आपस मे!भ्राता है!
कवि आग खुरकी है लिखता ही जाता है!!
संसदवाणी: कौन आम, खास कौन?
संसदवाणी: कौन आम, खास कौन?
संसद की लाचारी
पुरातत्व के मानचित्र मे मंेैइस दुनिया का जनपद हॅूं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मंे भारत की संसद हॅूं
मैने मुगलों को देखा था मान नही अपना खोया
अंग्रेजों के अंकुष के नीचे भी दबा नही रोया
आजाद हुआ निर्पेक्ष बना मंे काॅप रहा वो गणपद हूॅं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैं भारत का संसद हॅूं
गाॅंधी, नेहरू,लाल बहादुर की मर्यादा को देखा
हर विरोध की सीमाओं मंे खींची प्यार की थी रेखा
सत्ता और विरोधो में भी कीचढ नही उछलता था
तर्को और कूतर्कों से केवल भारत ही पलता था
उन्ही दिनो की यादों में षिखरों से गिरता हिमनद हॅूं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं
आजादी के साथ-साथ अब अपराधी भी आतें है
देख रहा हॅूं भ्रश्टाचारी ,कैसे षोर मचाते हैं
गुत्थम गुत्था में ये मेरे मेरूदण्ड को तोड रहे है
लोकतन्त्र की लोक-लाज को अय्यासी पर मोड रहे हैं
लाचारी मंे देख रहा हॅूं, नेता से छोटा कद हॅूं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं
पक्षों और विपक्षों का सम्मान सदा मंे पाता था
गौरवषाली भारत का इतिहास जगत मंे गाता था
भ्रश्टाचारी ,वैभवषाली की कुण्ठा से रोता हॅूं
लोक सभा हो राज्य सभा हो आज प्रतिश्ठा खोता हॅूं
सत्य,अहिंसा का प्रतिपालक आज लुटेरों का मद हॅूं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं, मैे भारत का संसद हॅूं
गुरूग्रन्थ गीता ,रामायण और कूरान बुनियादें थी
सतयुग,त्रेता,द्वापर,कलियुग की भी सारी यादें थी
सम्प्रदाय निर्पेक्ष राश्ट्र हो ऐसा नियम बनाया था
चक्रव्रती सम्राटों ने आदर्ष यहीं से पाया था
मैं भारत का जटाजूट हॅूं कल्प वृक्ष हॅूं बरगद हॅूं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं
भगत सिंह षेखर,सूभाश की आषाओं मंे खडा हुआ
भारत भंजन करने वालों के चरणों मंे पडा हुआ
राजनीति के कीचढ मे!उस प!कज को खोज रहा हॅू
राम राज्य मेंभारत माता जैसी सीता सोच रहा हॅूं
धर्म कर्म की इस धरती मंे पुनः धर्म का धम्पद हूॅ
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मंै भारत का संसद हॅूं
संविधान की धाराओंको सबके उपर फे!क रहा हॅूं
संसद की कुर्सी पर बैठे अपराधी मैं देख रहा हॅूं
क्यों होती है आज मंत्रणा,डाकू,चोर चकारों में
स!विधान की देख नुमाइस,आज खुले बाजारोंमें
चीर-हरण होता है मेरा सिद्या!त की सरहद हॅूं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं
फिर से कोई क्या मुझको सम्मान दिलाने आयेगा
फिर से कोई आर्यखण्ड की लाज बचाने आयेगा
मै!निराष हू!देख-देख कर डेढ़अरब की भीडो!को
सभी परिन्दे मौेन खडे़ है! देख के अपने नीडो!को
मै कवि‘आग’हू!,रावण के दरबार खडा हू!अ!गद हू!
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं ।।
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)मो0 9897399815
संसदवाणी: कौन आम, खास कौन?
संसदवाणी: कौन आम, खास कौन? बिहार बिक रहा है
हे बिहार के पासवान, हे राजनीति के नाषवान
हे लावारिस राश्ट्र-गान, हे अवसर-वादी पहलवान
हे सत्तादल के माल छान,हे लक्ष्य-भेद तरकस कमान
हे कटे वस्त्र के फटे थान,हे भीमराव के गुप्त-दान
हे राजनीति,दुर्गन्ध द्वन्द,हे अगडे़,पिछडे़मतिमन्द
हे धरती मे! दबे अन्ध,अपषिश्ट धरा के सडे़कन्द
हे तुकबन्दी के अन्ध बन्द,हे छपरा के छगन छन्द
उलझी सत्ता मे!पडे़फन्द,हे नन्द व!ष के घनानन्द
हे राजनीति के बैसाखी, हे र!ग-म!च नृतक राखी
तू फटे दुध की हैे माखी,हे सत्ता के चम-चम चाखी
हे अगडे़पिछडो! की झा!की,nहे खादी मे!व्याधी खाकी
हे हरिजन, दुर्जन के पाखी, हे सुरा-सुन्दरी के साखी
हे लालू नीतीष के सिर दर्दी,हे राहुल, मोदी हमदर्दी
हे आसमान, गुण्डागर्दी, अब राम लला की है वर्दी
तूने सत्ता मे! हद करदी,अब राजनीति पूरी चरदी
तू हरदी मे! भी है जरदी, नयी-नयी नसल पैदा करदी
तू जोकर भी कि!ग मेकर है, लालू का केयर टेकर है
आर.आर.एस की नेकर है,क!ही ब्रोकर है,क!ही ब्रेकर है
ये राजनीति ही गन्दी है, तू इसमे! पडा फुफन्दी है
कवि ‘आग ’ की भाशा मे!,बस, तू आवारा नन्दी हेै!!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग
हे बिहार के पासवान, हे राजनीति के नाषवान
हे लावारिस राश्ट्र-गान, हे अवसर-वादी पहलवान
हे सत्तादल के माल छान,हे लक्ष्य-भेद तरकस कमान
हे कटे वस्त्र के फटे थान,हे भीमराव के गुप्त-दान
हे राजनीति,दुर्गन्ध द्वन्द,हे अगडे़,पिछडे़मतिमन्द
हे धरती मे! दबे अन्ध,अपषिश्ट धरा के सडे़कन्द
हे तुकबन्दी के अन्ध बन्द,हे छपरा के छगन छन्द
उलझी सत्ता मे!पडे़फन्द,हे नन्द व!ष के घनानन्द
हे राजनीति के बैसाखी, हे र!ग-म!च नृतक राखी
तू फटे दुध की हैे माखी,हे सत्ता के चम-चम चाखी
हे अगडे़पिछडो! की झा!की,nहे खादी मे!व्याधी खाकी
हे हरिजन, दुर्जन के पाखी, हे सुरा-सुन्दरी के साखी
हे लालू नीतीष के सिर दर्दी,हे राहुल, मोदी हमदर्दी
हे आसमान, गुण्डागर्दी, अब राम लला की है वर्दी
तूने सत्ता मे! हद करदी,अब राजनीति पूरी चरदी
तू हरदी मे! भी है जरदी, नयी-नयी नसल पैदा करदी
तू जोकर भी कि!ग मेकर है, लालू का केयर टेकर है
आर.आर.एस की नेकर है,क!ही ब्रोकर है,क!ही ब्रेकर है
ये राजनीति ही गन्दी है, तू इसमे! पडा फुफन्दी है
कवि ‘आग ’ की भाशा मे!,बस, तू आवारा नन्दी हेै!!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग
Wednesday 18 December 2013
संसदवाणी: मुददों से मुंह चुराती राजनीति
संसदवाणी: मुददों से मुंह चुराती राजनीति
गजर घास
खिसयानी बिल्लीअब क्यो! खम्बा नोच रही है
इस लोकपाल मे! सबकी अपनी सोच रही है
क्यो! बाप छोड़कर चले गये,ये पछतावा है
तुम तो बस, चिन्गारी थे अन्ना लावा है
अह!कार मे! घर से निकलो बदनामी है
फटी ल!गोटी बडे़ आदमी की दामी है
आम आदमी बनकर अब तुम खास हो गये
जिसने छोडा बाप ,सभी उपहास हो गये
लोकपाल मे! अब क्यो! कमिया! ढू!ढ रहे हो
इस जनता पर रहम करो क्यो! मू!ड रहे हो
अच्छी खासी छोड़ चाकरी डाकु पकडे़
कविराज षिक्षक थे अब सडको पर अकडे़
कुछ पत्रकार थे सम्मानित थे कुद पडे़थे
ये राजनीति की लाइन मे! चुपचाप खडे़थे
क!ही बीजेपी,क!ही का!ग्रेस,क!ही ,कू!आ खायी
धरी रह गयी च!चल मन की सब चतुरायी
सरकार बनाने निकले थे ,सरकार बनाओ
सर आ!खो! पर रखा था अब ठोकर खाओ
पहले जनमत मा!गा था,अब चिटठी,पत्री
ये सूनामी है ,काम नही आयेगी छतरी
जब अन्ना को छोडा था, जनता से पूछा
जब राजनीति मे! आये,क्या जनता से पूछा
जब आप पार्टी बने स्वय! ,जनता से पूछा
जब राश्ट्रपति से मिले थे क्या जनता से पूछा
का!ग्रेस ,बी. जे. पी. को, क्यो! चिटठी डाली
क्या जनता से पूछी थी करतूते! काली
गले मे! हड्डी फ!सी पडी है क्यो! रोते हो
क्यो! तर्को औेर कूतर्को से गरिमा खोते हो
नवजात षिषू हो ,घर मे! बैठो निप्पल चूसो
राजनीति के ग्रास, गले मे! और ना ठूसो
बची,खुची इज्जत और अपनी लाज बचाओ
तुम हार गये हो,मौन रहो ,ना झे!प मिटाओ
बुनियादो! क े बिना भवन खुद गिर जाते है!
मजबूत जडो! के वृक्ष हमेषा लहराते है!
अब राजनीति मे! आये ,हो बुनियादे! डालो
कवि ‘आग’ कहता है,ये विशधर मत पालो!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
मो09897399815
गजर घास
खिसयानी बिल्लीअब क्यो! खम्बा नोच रही है
इस लोकपाल मे! सबकी अपनी सोच रही है
क्यो! बाप छोड़कर चले गये,ये पछतावा है
तुम तो बस, चिन्गारी थे अन्ना लावा है
अह!कार मे! घर से निकलो बदनामी है
फटी ल!गोटी बडे़ आदमी की दामी है
आम आदमी बनकर अब तुम खास हो गये
जिसने छोडा बाप ,सभी उपहास हो गये
लोकपाल मे! अब क्यो! कमिया! ढू!ढ रहे हो
इस जनता पर रहम करो क्यो! मू!ड रहे हो
अच्छी खासी छोड़ चाकरी डाकु पकडे़
कविराज षिक्षक थे अब सडको पर अकडे़
कुछ पत्रकार थे सम्मानित थे कुद पडे़थे
ये राजनीति की लाइन मे! चुपचाप खडे़थे
क!ही बीजेपी,क!ही का!ग्रेस,क!ही ,कू!आ खायी
धरी रह गयी च!चल मन की सब चतुरायी
सरकार बनाने निकले थे ,सरकार बनाओ
सर आ!खो! पर रखा था अब ठोकर खाओ
पहले जनमत मा!गा था,अब चिटठी,पत्री
ये सूनामी है ,काम नही आयेगी छतरी
जब अन्ना को छोडा था, जनता से पूछा
जब राजनीति मे! आये,क्या जनता से पूछा
जब आप पार्टी बने स्वय! ,जनता से पूछा
जब राश्ट्रपति से मिले थे क्या जनता से पूछा
का!ग्रेस ,बी. जे. पी. को, क्यो! चिटठी डाली
क्या जनता से पूछी थी करतूते! काली
गले मे! हड्डी फ!सी पडी है क्यो! रोते हो
क्यो! तर्को औेर कूतर्को से गरिमा खोते हो
नवजात षिषू हो ,घर मे! बैठो निप्पल चूसो
राजनीति के ग्रास, गले मे! और ना ठूसो
बची,खुची इज्जत और अपनी लाज बचाओ
तुम हार गये हो,मौन रहो ,ना झे!प मिटाओ
बुनियादो! क े बिना भवन खुद गिर जाते है!
मजबूत जडो! के वृक्ष हमेषा लहराते है!
अब राजनीति मे! आये ,हो बुनियादे! डालो
कवि ‘आग’ कहता है,ये विशधर मत पालो!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
मो09897399815
Sunday 18 August 2013
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